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शुक्रवार, 17 जून 2016

हिज्र की शब है और उजाला है - Hijra Ki Shab Hai Aur Ujala Hai

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हिज्र की शब है और उजाला है 


क्या तसव्वुर भी लुटने वाला है 

ग़म तो है ऐन ज़िन्दगी लेकिन 
ग़मगुसारों ने मार डाला है 

इश्क़ मज़बूर-ओ-नामुराद सही 
फिर भी ज़ालिम का बोल-बाला है 

देख कर बर्क़ की परेशानी 
आशियाँ ख़ुद ही फूँक डाला है 

कितने अश्कों को कितनी आहों को 
इक तबस्सुम में उसने ढाला है 

तेरी बातों को मैंने ऐ वाइज़
एहतरामन हँसी में टाला है 

मौत आए तो दिन फिरें शायद 
ज़िन्दगी ने तो मार डाला है 

शेर नज़्में शगुफ़्तगी मस्ती 
ग़म का जो रूप है निराला है 

लग़्ज़िशें मुस्कुराई हैं क्या-क्या 
होश ने जब मुझे सँभाला है 

दम अँधेरे में घुट रहा है "ख़ुमार" 
और चारों तरफ उजाला है
-ख़ुमार बाराबंकवी

शनिवार, 4 जून 2016

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे - Zindagi Se Yahi Gila Hai Mujhe

Hindi Creators





ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे 

तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं 
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल 
हार जाने का हौसला है मुझे

लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ 
कत्ल होने का हौसला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है 
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे

कौन जाने कि चाहतो में "फ़राज़ "
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे

-Ahmad Faraz

-अहमद फ़राज़ 

रविवार, 29 मई 2016

नर हो न निराश करो मन को - Nar Ho Na Niraash Karo Man ko

Hindi Creators



नर हो न निराश करो मन को

कुछ काम करो कुछ काम करो


जग में रहके निज नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो 

कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को ।

-मैथिलीशरण गुप्त 

- Maithilisharan Gupt

सोमवार, 23 मई 2016

दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के - Dono Jaahan Teri Mohabbat...

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दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के 

वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के 

वीराँ है मैकदा ख़ुमो-सागर उदास है 
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के 

इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली वो भी चार दिन 
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के 

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया 
तुम से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के 

भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'
मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दाकार के
-Faiz Ahmed 'Faiz'
- फैज़ अहमद 'फैज़'